शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009
हम क्या कर सकते हैं ?
समस्या तो हर जगह है। समस्या किसके साथ नहीं ? लेकिन समस्या के हल निकालने पड़ते हैं। नैनीताल का स्वरुप बिगड़ रहा है, तो इसे सहेजने के भी रास्ते होंगे। हमें उन्ही रास्तों को ढूंढना है। और दो चार कदम बढ़ाने हैं, मिलकर एकसाथ। यकीन मानिए, अगर शहर को बरबाद करने वालों की कमी नहीं है, तो इसे सहेजने वालों की भी कमी नहीं। लेकिन शहर को सहेजने वाले अलग-अलग खड़े हैं। और बरबाद करने वाले एकसाथ खूबसूरत शहर को बरबादी की ओर ले जा रहे हैं। हमें एक साथ खड़े होकर एक कोशिश तो करनी ही चाहिए। क्या आपको लगता है, कि ये नहीं हो सकता ? शायद ये बहुत आसान है। हम पढ़े लिखे हैं, सूचनाओं के संसार में रहते हैं। हमारे दोनों हाथों में सूचना है, हमारे पास संसाधन भी है, और कुछ करने का जज़्बा भी। लेकिन हम कदम आगे नहीं बढ़ाते। हम डरते हैं कि हम अकेले हैं। लेकिन हम कभी अकेले नहीं होते। यही सोचकर नैनीताल में कुछ लोग नैनीताल बचाओ अभियान चला रहे हैं। उनके साथ भी कम ही लोग हैं, लेकिन लोग जुड़ रहे हैं। बच्चों को समझ आ रहा है, और वो इसमें ख़ासी रुचि लेते हैं। लेकिन हमें इसे बड़ा रुप देना है। एकबार कोशिश तो करनी ही चाहिए। खुद से एकबार पूछकर देखिए। शायद आपका मन हां कहे।.... अगर ऐसा हुआ, तो अबकी बार जब घर जाओ, तो आस-पड़ोस वालों से कहना, झील को कचरे का डिब्बा मत बनाओ। उन्हें समझाना कि कैसे कचरे को सही जगह पर डालकर वो नैनीताल को बचा सकते हैं। उन्हें बताना कि कैसे पेड़ लागकर वो हरियाली को बढ़ा सकते हैं। अगर इतना भी किया तो काफी होगा।
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