बुधवार, 18 मार्च 2009

सुनो, मैं नैनीताल बोल रहा हूं : दो

इक शहर की आत्मकथा

मेरा मालिक बदल गया। ये मेरे जीवन का अहम मोड़ था। मैं नहीं जानता था कि नियति मुझे कहां ले जाएगी, और आने वाले दिनों में मेरा स्वरुप क्या होगा ?
खैर... कितने ही बदलाव देखे हैं, मेरी बूढ़ी आंखों ने। शायद तुम्हें आश्चर्य लगे। कितनी ही बार मेरे शिखऱ नीचे को दरक आए ? लगा.... मानों मैं मर जाऊंगा। १८६७ में शेर का डांडा और १९ सितंबर १८८० को विक्टोरिया होटल के पास भीषण भूस्खलन हुआ। इसमें १५१ लोग मारे गए। मरने वालों में ४३ गोरे भी थे। ये भूस्खलन इतना ज़ोरदार था, कि इससे मेरा वर्तमान भी जुड़ा है। इसी भू-स्खलन में वर्तमान फ्लैट का निर्माण हुआ। आज यहां पर लोग क्रिकेट और फुटबॉल के मैच खेलते हैं।
इस भू-स्खलन के कुछ साल बाद ९ अगस्त १८९८ को कैलाखान पहाड़ी पर भू-स्खलन से बलियानाला दुर्गापुर नाले की ओर मुड़ गया। समें २९ लोग मारे गए।
१८९१, १९०१, १९४२ में भी ... मैंनै भीषण भूस्खलन देखे हैं। कई लोग मरे ... इसमें। प्रकति मुझे बार-बार बदलती रही है। नैनादेवी के मंदिर को ही लो। जब अग्रेज व्यापारी बैरन यहां या, उससे पहले यह तल्लीताल डांट के पास था, जहां आजकल डाकघर है। बैरन ने अपनी किताब 'हिमाला' में भी इसका वर्णन किया है। फिर नैना देवी मंदिर को वर्तमान बोट हाउस क्लब के पास बनाया गया। इसके भू-स्खलन में दब जाने पर, १८८० में ये मंदिर वर्तमान स्थान पर शहर की जानीमानी हस्ती लाल मोतीराम साह जी ने बनवाया।
बैरन मेरे सौंदर्य से अभिभूत तो था ही। उसने मुझे आबाद करने के मन से कलकत्ता से निकलने वाले अखबार 'आगरा अखबार' में मेरे बारे में लिखा। बैरन यहां एक शहर बसाना चाहता था। खबर छपने के बाद कई अंग्रेज यहां की ओर आकर्षित हुआ। और इस प्रकार १८४१ में नैनीताल शहर का निर्माण शुरू हो गया। सबसे पहले बैरन ने अपने लिए एक कोठी बनायी। इसके बाद कुमांऊ के तत्कालीन कमिश्नर लाशिंगटन ने १८४१ में अपने लिए एक कोठी का निर्माण करवाया। इसी वक्त १८४०-४१ के आसपास नैनीताल शहर का बंदोबस्त हुआ।
भारतीयों में सबसे पहले कोठी बनाने वालों में लाला मोतीराम साह थे। इस प्रकार नैनीताल में धीरे-धीरे कोठियां बनने का सिलसिला शुरू हो गया। सन् १८५७ में यहां प्रांतीय लाट रहने लगा। १८६२ में उसने अपनी कोठी रैमजे हॉस्पिटल के पास बनवायी।... १८६५ में पहले लाट डूमंड ने अपनी कोठी शेर का डांडा में बनवायी। इसी कोठी में बाद के कई लाट रहे।
अरे ... एक बात तो मैं पीछे ही छोड़ या। १८४१ में जब शहर का निर्माण शुरू हुआ, तो इससे ठीक चार साल बाद यानि १८४५ में मुझे नगरपालिका क्षेत्र बना दिया गया। बहुत कम लोग जानते हैं, कि मैं भारत का दूसरा सबसे पुराना नगरपालिका क्षेत्र रहा हूं। उसी समय से शहर की पूरी ज़िम्मेदारी नगरपालिका के ऊपर गयी। जब नगरपालिका अस्तित्व में आई, तब इसकी आमदनी ८००-९०० रुपे सालाना थी। धीरे-धीरे इसकी मदनी बढ़ती गयी, और १९३२ में नगरपालिका पांच लाख पांच हज़ार एक सौ चौबीस रुपए की अच्छी ख़ासी कमाई करने लगी।

3 टिप्‍पणियां:

  1. itz heaven,i`ve been there 2 times......

    give more information please

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  2. सन १९६३ - १९६४ और सन २००७ के नैनीताल में बहुत ज्यादा अंतर नहीं देखा सिवा फ्लैट का आकार छोटा हो जाने के. नैनीताल के बारे में इससे पहले विनीता यशस्वी जी के ब्लॉग में पढता रहा. मेरे सिस्टम में आपके ब्लॉग 'हिमाल : अपना पहाड़ ' की पोस्ट के अल्फाबेट की जगह डोट्स दिखाई देते हैं.

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  3. pahalee baar aapke blog par aanaa huyaa. achahaa hai nainitaliyon ke blogs ko dekhkar

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